Thursday, November 12, 2009
कुमाऊं में न्याय देवता के रूप में पूजे जाते हैं गोल ज्यू
घोड़ाखाल गोलू देवता मंदिर में वैसे तो वर्ष भर देश-विदेश से पूजा अर्चना करने श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है। मगर नवरात्रों में यहां भारी संख्या में श्रद्धालु पूजा करने पहुंचते है। न्याय के देवता के रूप में पूजे जाने वाले गोलू देवता मंदिर घोड़ाखाल में श्रद्धालुओं द्वारा टांगी गई छोटी-बड़ी सैकड़ों घंटियां उनकी आस्था का प्रतीक बन चुकी हैं।
गोलू देवता की उत्पत्ति कत्यूर वंश के राजा झालराई से मानी जाती है। जिनकी तत्कालीन राज्य की राजधानी धूमाकोट चम्पावत थी, परन्तु गोलज्यू जिन्हे गौर भैरव का अवतार माना जाता है, इनकी उत्पत्ति कैसे हुई यह प्रसंग शिवपुराण, रुद्र संहिता पार्वती खण्ड में उल्लिखित है। द्वापर युग के अंत में देवी रुकमणि के गर्भ से प्रद्युम्न का जन्म हुआ। प्रद्युम्न पालने का बालक ही था कि गढ़ी चम्पावत के राजा वाणासुर के मंत्री सम्बर द्वारा उसका अपहरण कर लिया गया। समस्त द्वारिकापुरी में प्रद्युम्न के अपहरण की घटना से दु:खी होकर भगवान कृष्ण ने भगवती जगदम्बा का स्मरण किया। देवी जगदम्बा ने दर्शन देकर भगवान कृष्ण को बताया कि उनके पुत्र प्रद्युम्न का अपहरण वाणासुर के मंत्री सम्बर द्वारा किया गया है। उसकी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उन्होंने उसकी रक्षा के लिए गौर भैरव व काल भैरव को भेज दिया है। देवी कृपा से कृष्ण अपने पुत्र को लेने गढ़ी चम्पावत पहुंचे। पुत्र को सकुशल देखकर कृष्ण प्रसन्न हुए और उन्होंने गौर भैरव से कहा जिस तरह तुमने मेरे पुत्र की रक्षा की इसी तरह आज से तुम सम्पूर्ण हिमाचल खण्ड के आधिपति देव बनकर सम्पूर्ण क्षेत्र की रक्षा करोगे। मैं तुम्हें इसी समय से गढी चम्पावत के अवतारी देवता के रूप में स्थापित करता हूं। साथ ही कृष्ण ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि इस सम्पूर्ण अंचल में तुम्हारी मान्यता न्यायकारी देवता के रूप में होगी। तब से गौर भैरव इस अंचल में सर्व सिद्धी दाता न्यायकारी व कृष्ण अवतारी देवता के रूप में प्रसिद्ध हो गए।
कहा जाता है कि इंसान में ही भगवान वास करता है। भगवान ने किस तरह इंसान के रूप में अवतरित होकर सर्वफलदायी और न्यायकारी देवता के रूप में मान्यता ली किंवदंती के अनुसार इस गाथा से स्पष्ट हो जाता है। राजा झालराई की सात रानियां होने पर भी वह नि:संतान थे। संतान प्राप्ति की आस में राजा द्वारा काशी के सिद्ध बाबा से भैरव यज्ञ करवाया और सपने में उन्हें गौर भैरव ने दर्शन दिए और कहा राजन अब आप आठवां विवाह करो में उसी रानी के गर्भ से आपके पुत्र रूप में जन्म लूंगा। इस प्रकार राजा ने आठवां विवाह कालिंका से रचाया। मगर इससे सातों रानियों में कालिंका को लेकर ईष्या उत्पन्न हो गई। कालिंका का गर्भवती होना सातों रानियों के लिए असहनीय हो गया। तब तीनों रानियों ने ईष्या के चलते षडयंत्र रचते हुए कालिंका को बताया कि ग्रहों के प्रकोप से बचने के लिए माता से पैदा होने वाले शिशु की सूरत सात दिनों तक नहीं देखनी पड़ेगी। यह सुनकर वंश की परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए कालिंका तैयार हो गई। कालिंका को कोठरी में कर दिया गया। प्रसव पीड़ा होते ही उसकी आंखों में काली पट्टी बांध दी गई। सातों रानियों ने नवजात शिशु को हटाकर उसकी जगह सिलबट्टंा रख दिया गया। फिर उसे बताया कि उसने सिलबट्टे को जन्म दिया है। सातों रानियां नवजात शिशु को मारने की व्यवस्था करने लगी। सर्वप्रथम उन्होंने बालक को गौशाला में फेंककर यह सोचा की बालक जानवरों के पैर तले कुचलकर मर जाएगा। मगर देखा कि गाय घुटने टेक कर शिशु के मुंह में अपना थन डाले हुए दूध पिला रही है। अनेक कोशिशों के बाद भी बालक नहीं मरा तो रानियों ने उसे संदूक में डालकर काली नदी में फेंक दिया। मगर ईश्वरी चमत्कार से संदूक तैरता हुआ गौरी घाट तक पहुंच गया। जहां वह भाना नामक मछुवारे के जाल में फंस गया। संदूक में मिले बालक को लेकर नि:संतान मछुवारा अत्यन्त प्रसन्न होकर उसे घर ले गया। गौरी घाट में मिलने के कारण उसने बालक का नाम गोरिया रख दिया। बालक जब कुछ बड़ा हुआ तो उसने मछुवारे से घोड़ा लेने की जिद की। गरीब मछुवारे के लिए घोड़ा खरीद पाना मुश्किल था, उसने बालक की जिद पर उसे लकड़ी का घोड़ा बनाकर दे दिया। बालक घोड़ा पाकर अति प्रसन्न हुआ। बालक जब घोड़े पर बैठा तो वह घोड़ा सरपट दौड़ने लगा। यह दृश्य देख गांव वाले चकित रह गए। एक दिन काठ के घोड़े पर चढकर वह धोली धूमाकोट नामक स्थान पर जा पहुंचा, जहां सातों रानियां राजघाट से पानी भर रही थीं। वह रानियों से बोला पहले उसका घोड़ा पानी पियेगा, बाद में आप लोग पानी भरना। यह सुनकर रानियां हंसने लगी और बोली अरे मूर्ख जा बेकार की बातें मतकर कहीं कांठ का घोड़ा भी पानी पीता है। बालक बोला जब स्त्री के गर्भ से सिलबट्टा पैदा हो सकता है तो कांठ का घोड़ा पानी क्यों नहीं पी सकता। यह सुनकर सातों रानियां घबरा गई। सातों रानियों ने यह बात राजा से कहीं। राजा द्वारा बालक को बुलाकर सच्चाई जानना चाही तो बालक ने सातों रानियों द्वारा उनकी माता कालिंका के साथ रचे गये षडयंत्र की कहानी सुनायी। तब राजा झालराई ने उस बालक से अपना पुत्र होने का प्रमाण मंागा। इस पर बालक गोरिया ने कहा कि यदि मैं माता कालिंका का पुत्र हूं तो इसी पल मेरे माता के वक्ष से दूध की धारा निकलकर मेरे मुंह में चली जाएगी और ऐसा ही हुआ। राजा ने बालक को गले लगा लिया और राजपाठ सौंप दिया। इसके बाद वह राजा बनकर जगह-जगह न्याय सभाएं लगाकर प्रजा को न्याय दिलाते रहे। न्याय देवता के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करने के बाद वह अलोप हो गए।
गोलज्यू का मूल स्थान चम्पावत माना जाता है। स्थानीय जनश्रुति के अनुसार उन्हे घोड़ाखाल में स्थापित करने का श्रेय महरागांव की एक महिला को माना जाता है। यह महिला वर्षो पूर्व अपने परिजनों द्वारा सतायी जाती रही। उसने चम्पावत अपने मायके जाकर गोलज्यू से न्याय हेतु साथ चलने की प्रार्थना की। गोलज्यू उसके साथ यहां पहुंचे। मान्यता है कि सच्चे मन से मनौती मांगने जो भी घोड़ाखाल पहुंचते हैं गोलज्यू उसकी मनौती पूर्ण करते हैं। न्याय के देवता के रूप पूजे जाने वाले गोलज्यू पर आस्था रखने वाले उनके अनुयायी न्याय की आस लेकर मंदिर में अर्जियां टांग जाते हैं। जिसका प्रमाण मंदिर में टंगी हजारों अर्जियां हैं। न्याय की प्राप्ति होने पर वह घंटियां चढ़ाना नहीं भूलते। जिसके चलते घोड़ाखाल का गोलू मंदिर पर्यटकों के बीच घंटियों वाले मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हो चला है।
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